स्वास्थ्य को लेकर बढ़ी जागरूकता के बाद अब हम में से हर कोई विभिन्न प्रकार के ‘सुपरफूड’ की तलाश में रहता है। सुपरफूड यानी कि वे सब्जी, फल या मेवे जिनमें बड़ी मात्रा में पोषक तत्व भरे-पड़े हों। ऐसा ही एक सुपरफूड है ‘लतारू’। यह मुख्यतया बिहार के मगध क्षेत्र में उगाई जाने वाली एक सब्जी है।
मध्य प्रदेश और गुजरात के आदिवासी इलाकों में लतारू को ‘अगीठा’ के नाम से जाना जाता है। अंग्रेजी में इसे ‘एयर यम’ या ‘एयर पोटेटो’ कहा जाता है। कई जगहों पर इसे ‘हवाई आलू’ भी कहा जाता है। इसका वानस्पतिक नाम 'डायसकोरिया बल्बीफेरा है।
यह कमाल का सुपरफूड है। इसमें ‘रेसिस्टेंट स्टार्च’ पाया जाता है, जो आपकr पाचन क्रिया को दुरुस्त करता है। लतारू प्रोटीन, लवण तथा सूक्ष्म व अति सूक्ष्म पोषक तत्वों से भरपूर होते हैं। कई आदिवासी हर्बल जानकार महिलाओं में योनि शुष्कता और अन्य संबंधित समस्याओं के लिए लतारू खाने की सलाह देते हैं। रजोनिवृति के दौरान महिलाओं को इसे विशेष तौर दिया जाता है।
कई शोधपत्रों के अनुसार, लतारू में ‘डायसजेनिन’ नाम का एक प्राकृतिक रासायनिक यौगिक पाया जाता है जो एक प्रकृतिक स्टेरॉयड और फाइटोएस्ट्रोजन है।
अफ्रीकन आदिवासी इस कन्द के पल्प से क्रीम बनाते हैं और उसे योनि संक्रमण तथा अन्य तरह की सूजन संबंधी समस्याएं होने पर लगाते हैं। इसे अनियमित मासिक धर्म के दौरान भी खास तौर से खाया जाता है।
लतारू के कंद ऊर्जा से भरपूर होते हैं। इनमें पोटेशियम और मैगनीज़ भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं। ये तत्व हड्डियों, मांसपेशियों और हृदय के लिए काफी महत्वपूर्ण हैं। पातालकोट में आदिवासी इन्हें उबालकर बड़े शौक से खाते हैं। गुडरात के डांग में रात्रिभोज के दौरान चावल के आटे की रोटियों के साथ लतारू की सब्जी या इसे उबालकर परोसा जाता है। यौन क्षमताएं बढ़ाने के लिए भी इसका उपयोग किया जाता है।
लतारू की बेल पर दो तरह के कंद उगते हैं। नवरात्र के आसपास इसकी बेल पर हवा में लटके कन्द देखे जा सकते हैं। यदि धूप और नमी मिले तो एक पौधे से एक वर्ष में 10 से 12 किलो लतारू मिल जाता है।
जमीन में एक बार लतारू लगाने के बाद, एक बेल निकलेगी और उस बेल पर दिल के आकार के पत्ते बनने लगेंगे। बेल पर साल दर साल कन्द निकलते रहेंगे। छोटे कन्द बेल पर लटकते दिखते हैं। इसलिए, इन्हें ‘एयर यम’ या ‘एयर पोटेटो’ कहते हैं। जमीन के भीतर वाले कन्द को निकाल लिया जाए तो पौधा मर जाता है। जमीनी कन्द को दो से तीन साल बाद निकालेंगे तो उसका वजन चार-छह किलो से लेकर 12 किलोग्राम तक होता है। इस जमीनी कन्द को भी उबालकर खाया जाता है।
(लेखक ऑल इंडिया रेडियो वाराणसी में प्रोग्राम एग्जीक्यूटिव हैं।)
(डिस्क्लेमर : उपरोक्त फल को इस्तेमाल करने से पहले किसी विशेषज्ञ से आवश्यक चिकित्सकीय राय जरूर ले लें।)
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