तेलंगाना में करीमनगर के एक किसान ने खेती के प्रति लगन, नई सोच और प्रयोगधर्मिकता का उदाहरण पेश किया है। उन्होंने चावल की ऐसी किस्म की खोज की है जिसमें खाने के लिए उसे पकाए जाने की जरूरत नहीं होगी। चावल को कुछ देर के लिए पानी में भिगो देना ही काफी होगा। अगर आप गरमागरम चावल खाना चाहते हैं तो उसे गर्म पानी में भिगो सकते हैं। अन्यथा सामान्य पानी से भिगोकर खाने पर भी चावल उसी तरह तैयार हो जाता है।
करीमनगर के श्रीराममल्लापल्ली गांव के किसान श्रीकांत का कहना है कि उन्हें एक बार असम जाने का मौका मिला था। वहां उन्हें चावल की ऐसी किस्म के बारे में पता चला जिसे बिना पकाए ही खाया जा सकता है। उन्होंने गौहाटी विश्वविद्यालय से संपर्क करके चावल की इस अनूठी प्रजाति के बारे में जानकारी ली। वहां उन्हें पता चला कि असम के पहाड़ी इलाकों में कुछ जनजातियां इस तरह का चावल पैदा करती हैं जिसे खाने के लिए पकाने की जरूरत नहीं होती।
पहाड़ी जनजातीय इलाकों में इस किस्म के चावल को बोकासौल नाम से जाना जाता है। चावल की यह किस्म सेहत के लिए बेहद गुणकारी होती है। चावल में 10.73 फीसदी फाइबर और 6.8 फीसदी प्रोटीन होता है। श्रीकांत बताते हैं कि इस चावल को गुड़, केला और दही के साथ खाने से स्वाद लाजवाब बन होता है।
श्रीकांत असम के जनजातीय इलाके से चावल की इस किस्म के बीज लेकर आए। 12वीं शताब्दी में असम में राज करने वाले अहम राजवंश को बोकासौल चावल बहुत पसंद था लेकिन बाद में चावल की दूसरी प्रजातियों को मांग बढ़ती चली गई। किसान श्रीकांत ने बताया कि लगभग विलुप्त हो चुकी चावल की इस किस्म को विकसित करने का फैसला उन्होंने लिया और आधा एकड़ खेत में उसकी बुवाई कर दी। श्रीकांत को उम्मीद थी कि आधे एकड़ में करीब पांच बोरी चावल का उत्पादन हो जाएगा। दूसरी प्रजातियों के बराबर ही इस चावल की फसल 145 दिन में ही तैयार हो जाती है।
श्रीकांत कहते हैं कि आधुनिक युग में इस चावल की उपयोगिता को समझा जा सकता है। खासकर जब रसोई गैस की कीमतें लगातार बढ़ रही हैं।
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