चावल और मसालों का बादशाही अफसाना है बिरयानी


भारत के सड़क किनारे ठेलों से लेकर पांच सितारा होटल तक, बिरयानी ने अपना जादू बिखेर दिया है। एक समय था जब अंडे की ठेलों, आलू चाट, भल्ले और गोलगप्पों का बोलबाला था। फिर मैगी और मोमो ने युवाओं के दिलों पर राज किया। लेकिन आज हर शहर, हर गली में बिरयानी की खुशबू फैली हुई है। हैदराबाद से लेकर वृंदावन तक, मटन बिरयानी से लेकर वेज बिरयानी तक – यह व्यंजन भारत की पाक संस्कृति का नया चेहरा बन चुका है। 

बिरयानी शब्द की उत्पत्ति फारसी शब्द बिरियन यानी ‘भूनना’ या बिरिंज यानी ‘चावल’ से हुई है। कुछ इतिहासकारों का मानना है कि यह व्यंजन ईरान से मध्य एशिया होते हुए भारत पहुंचा, जहां मुगलों ने इसे नया स्वाद और तकनीक दी। बिरयानी के आगे खिचड़ी, पोंगल, पुलाव, सतरंगी फ्लेवर्स के चावल, सब चमक खो रहे हैं। कई रेस्तरां में स्पाइसी चटनी और रायते और प्याज के छल्ले मसाला मारकर, परोसे जाते हैं।

Read in English: Biryani, the royal tale of rice and spices...

जानकार भोजन प्रेमी बताते हैं कि भारत में बिरयानी ने क्षेत्रीय स्वादों को अपनाकर अलग-अलग रूप ले लिए हैं। मैसूर में एक रेस्टोरेंट में किलो के हिसाब से बाल्टी में मिलती है नॉन वेज बिरयानी। दक्षिणी बिरयानी मसालों की महक से महकती है जो दूर से कद्रदानों को आकर्षित कर लेती है।

आगरा की गलियों में जो महकती बिरयानी की खुशबू तैरती है, वह किसी इत्तेफाक़ का नतीजा नहीं, बल्कि एक लंबा ऐतिहासिक और सांस्कृतिक सफर है। वाटर वर्क्स क्रॉसिंग हो या छीपी टोला, पीर कल्याणी हो या दीवानी का चौराहा—हर गली, हर नुक्कड़ पर बिरयानी का ताज पहने स्टॉल सजे हैं। युवा हों या बुज़ुर्ग, अमीर हों या ग़रीब—हर कोई इस जादुई व्यंजन का दीवाना है।

कहते हैं कि आगरा के शाही खानसामों ने ही सबसे पहले बिरयानी को भारतीय अंदाज़ में ढाला। मुगल छावनियों में बड़े-बड़े देगचों में बिरयानी को धीमी आंच पर पूरी रात पकाया जाता था, जिसमें गोश्त, केसर, मेवे और खुशबूदार चावल का संगम होता था। यह शाही पकवान न सिर्फ पेट भरता था, बल्कि दिल को भी तसल्ली देता था।

एक लोकप्रिय किंवदंती के अनुसार, मुमताज महल ने जब देखा कि सैनिकों का आहार संतुलित नहीं है, तो उन्होंने अपने शाही बावर्चियों को आदेश दिया कि एक ऐसा भोजन तैयार करें जो स्वादिष्ट होने के साथ-साथ पोषण से भरपूर हो। और फिर जन्म हुआ – बिरयानी का!

बिरयानी जितनी लज़ीज़ है, उतनी ही विविधता से भरपूर भी। हर क्षेत्र ने इसे अपनाया और अपने-अपने रंग-ढंग से संवारा। निज़ामों की रसोई से निकली हैदराबादी बिरयानी कच्चे मांस और चावल को एक साथ दम पर पकाने की कला है। इसमें केसर, जावित्री, दालचीनी जैसे मसालों की जादूगरी देखने को मिलती है। ‘दम पुख्त’ शैली में बनी लखनवी या अवधी बिरयानी में नफासत और नज़ाकत का अद्भुत मेल होता है। मीट का रस चावलों में समा जाता है।

जब नवाब वाजिद अली शाह को निर्वासित किया गया, तब मटन की जगह आलू और अंडे ने कोलकाता बिरयानी में जगह पाई, और यह आज तक लोगों की पसंद बनी हुई है। केरल की थालास्सेरी बिरयानी में खास किस्म का खयमा चावल, मालाबार मसाले, काजू और किशमिश का अद्भुत संगम देखने को मिलता है। तमिलनाडु की डिंडीगुल बिरयानी को तीखे मसाले, सीरगा सांबा चावल और दमदार स्वाद खास बनाते हैं।

आगरा और ब्रज क्षेत्र में अब वेज बिरयानी ने भी झंडे गाड़ दिए हैं। कभी जो व्यंजन पूरी तरह मांसाहारी माना जाता था, वह अब पनीर, सोया, मशरूम और कटहल के साथ नए अवतार में लोगों के दिलों में जगह बना रहा है।

मथुरा-वृंदावन जैसे तीर्थ स्थलों में, जहां पहले पारंपरिक शुद्ध शाकाहारी भोजन की ही कल्पना की जाती थी, वहां अब वेज बिरयानी के खोमचे दिखाई देने लगे हैं। यह कोई मामूली बदलाव नहीं, बल्कि भारत की पाक परंपरा में एक नया अध्याय है।

बिरयानी अब न सिर्फ स्टॉल और ढाबों तक सीमित है, बल्कि स्विगी और जोमैटो जैसे ऐप्प के ज़रिए हर घर तक पहुंच चुकी है। बड़े-बड़े फूड व्लॉगर्स इसे चखने के लिए शहरों के कोने-कोने में घूमते हैं। यू-ट्यूब चैनल्स पर ‘10 बेस्ट बिरयानी स्पॉट्स’ जैसी वीडियो की भरमार है। बिरयानी अब ‘इंस्टाग्रामेबल डिश’ बन चुकी है।

एक हालिया सर्वे के अनुसार, भारत में हर मिनट 95 प्लेट बिरयानी ऑर्डर होती हैं। पिछले पांच वर्षों में बिरयानी की मांग 75 फीसदी तक बढ़ी है। यह आंकड़े गवाही देते हैं कि बिरयानी महज़ खाना नहीं बल्कि एक जज़्बा बन चुकी है।

बिरयानी अब दुबई, न्यूयॉर्क, लंदन और सिंगापुर जैसे शहरों में भारतीय रेस्तरां की जान बन चुकी है। जहां भी प्रवासी भारतीय हैं, वहां बिरयानी की मांग है। कुछ तो इसे ‘डिप्लोमैटिक डिश’ भी कहने लगे हैं, जो भारत की नर्म छवि को विदेशों में प्रचारित करती है।

बिरयानी के इस बेइंतहा शौक को देखकर इतना तो साफ है कि यह महज स्वाद नहीं, बल्कि एक जज़्बात है। यह चावल और मसालों की मोहब्बत है, जो ज़ुबान से शुरू होकर दिल तक पहुंचती है।

आज जब खानपान में तकरार और तंगनज़री बढ़ रही है, बिरयानी हमें याद दिलाती है कि विविधता में ही सौंदर्य है – और यही है भारत की असली पहचान।








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